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Free { काव्यखंड } Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 3 : अति सूधो …बरसौं

August 20, 2024 by Ankit Banger Leave a Comment

Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 3 : बिहार बोर्ड कक्षा 10 विषय हिंदी “काव्य खंड” पाठ 3 “अति सूधो सनेह को मरता है, मो अंसुवानिहीं लै बरसों” कवि “घनानंद” के द्वारा लिखा गया इस कवित के बारें में और महत्पूर्ण सवालों को इस आर्टिकल में विस्तार से जानेगें | अन्य सभी पाठ के बारे में जानकारी निचे आपको मल जाएगी |

कविता: “अति सूधो सनेह को मरता है, मो अंसुवानिहीं लै बरसों”
कवि: घनानंद

सारांश:
इस कविता में घनानंद ने सच्चे प्रेम की पवित्रता को दर्शाया है। वह प्रेम जो स्वार्थ और दिखावे से मुक्त होता है, उसे कवि ने ‘सूधो’ अर्थात् शुद्ध कहा है। कवि के अनुसार, इस शुद्ध प्रेम में आँसू भी प्रेम की गहराई और पवित्रता का प्रतीक बन जाते हैं। यह प्रेम दुख को भी मधुर अनुभव में बदल देता है, और प्रेमी के हृदय में वास करता है। घनानंद ने इस कविता में प्रेम की गहनता और उसकी सच्ची भावना को सरल और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया है।

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Bihar Board Subject Hindi 10th Chapter 3

Board NameBihar School Examination Board
Class10th
SubjectHindi ( गोधूलि भाग-2 )
Chapterअति सूधो सनेह को मरता है, मो अंसुवानिहीं लै बरसों
Writerघनानंद
Sectionकाव्य खंड
LanguageHindi
Exam2025
Last UpdateLast Weeks
Marks100

अति सूधो सनेह को मरता है, मो अंसुवानिहीं लै बरसों

अति सूधो सनेह को मरता है, मो अंसुवानिहीं लै बरसों

कवि: घनानंद

सारांश:
कवि घनानंद की कविता “अति सूधो सनेह को मरता है, मो अंसुवानिहीं लै बरसों” एक उत्कृष्ट रचना है जो उनके सूक्ष्म प्रेमभाव और आध्यात्मिक अनुभव को प्रकट करती है। इस कविता में कवि ने प्रेम की पवित्रता और उसके प्रभावों को बेहद सरल और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है।

कविता का मूल भाव यह है कि सच्चा प्रेम इतना पवित्र और सूक्ष्म होता है कि वह बाहरी दिखावे या आडंबरों से परे होता है। कवि यहाँ प्रेम को ‘सूधो’ अर्थात् शुद्ध और निर्मल कहते हैं, जो किसी प्रकार की स्वार्थपूर्ण भावना या लालसा से मुक्त होता है। यह प्रेम इतना गहरा होता है कि उसमें दुख और आँसू भी एक प्रकार का सुख बन जाते हैं।

कवि कहता है कि जब सच्चा प्रेम उत्पन्न होता है, तो वह प्रेमी के आंसुओं के रूप में प्रकट होता है। आंसू यहाँ प्रेम की गहनता और उसकी पवित्रता का प्रतीक हैं। कवि के अनुसार, इस शुद्ध प्रेम में दुख भी एक मधुर अनुभव बन जाता है, और यह प्रेमी के हृदय में वास करता है।

काव्य-सौंदर्य:

  1. प्रेम की परिभाषा: कवि ने प्रेम की शुद्धता को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है। यह प्रेम केवल मानवीय संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक प्रेम की ओर भी इंगित करता है।
  2. भावनात्मक अभिव्यक्ति: कविता में प्रेम की गहराई और उसकी प्रभावशीलता को बहुत ही सजीव रूप में वर्णित किया गया है।
  3. भाषा: घनानंद ने सरल, सहज, और प्रचलित भाषा का उपयोग किया है जो कविता को और भी प्रभावी बनाती है।
  4. अलंकार: कविता में अनुप्रास और रूपक अलंकार का सुंदर प्रयोग हुआ है, जिससे कविता का सौंदर्य और बढ़ गया है।

निष्कर्ष:
कविता “अति सूधो सनेह को मरता है, मो अंसुवानिहीं लै बरसों” घनानंद की उत्कृष्ट रचनाओं में से एक है, जो सच्चे प्रेम की महत्ता और उसकी गहनता को सरल, किन्तु प्रभावी रूप से प्रस्तुत करती है। यह रचना न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जीवन के गहन और आध्यात्मिक अनुभवों को भी अभिव्यक्त करती है।

महत्पूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1: कवि प्रेममार्ग को अति सूधों क्यों कहता है? इस मार्ग की विशेषता क्या है?

उत्तर:
कवि घनानंद प्रेम मार्ग को “अति सूधो” अर्थात् अत्यंत सरल और पवित्र बताते हैं। उनका कहना है कि प्रेम की भावना इतनी पवित्र और मधुर होती है कि इस मार्ग पर चलना सहज और सरल होता है। इसमें किसी प्रकार के छल-कपट, चालाकी, या जटिलता की आवश्यकता नहीं होती है। प्रेम मार्ग पर चलने के लिए अत्यधिक सोच-विचार या बुद्धि बल की आवश्यकता नहीं होती; इसमें केवल सच्ची और निःस्वार्थ भावना की जरूरत होती है।

प्रेम मार्ग की विशेषता यह है कि इसमें केवल देने का भाव होता है, लेने का कोई स्थान नहीं होता। प्रेम में प्रेमी अपनी सभी भावनाएँ और सर्वस्व समर्पित कर देता है। यह मार्ग पूरी तरह से स्वार्थहीन होता है और इसमें प्रेमी और प्रेम करने वाला एकाकार हो जाते हैं। प्रेम में दो अलग-अलग व्यक्तित्व नहीं रहते, बल्कि एक पहचान स्थापित हो जाती है। यह मार्ग सच्चाई और सरलता से भरा होता है, इसलिए कवि इसे “अति सूधो” कहते हैं।


प्रश्न 2: ‘मन लेह पै देह छटाँक नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है?

उत्तर:
कवि घनानंद “मन लेह पै देह छटाँक नहीं” के माध्यम से प्रेम में संपूर्ण समर्पण की भावना को व्यक्त करते हैं। “मन” यहाँ प्रेमी के संपूर्ण अस्तित्व या समर्पण का प्रतीक है, जबकि “छटाँक” बहुत ही छोटे या नगण्य चीज़ का सूचक है। इसका अर्थ यह है कि सच्चे प्रेम में प्रेमी अपने इष्ट (प्रेम करने वाले) को संपूर्ण मन, आत्मा और अस्तित्व समर्पित कर देता है, जबकि बदले में किसी भी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखता।

प्रेम में केवल देने का भाव होता है और प्रेमी अपने प्रेम में सब कुछ न्योछावर करके खुद को धन्य मानता है। इस प्रेम में लेश मात्र भी स्वार्थ या लेने की इच्छा नहीं होती है। यह प्रेम मार्ग का एक महत्वपूर्ण गुण है, जिसे कवि इस पंक्ति के माध्यम से व्यक्त करते हैं।


प्रश्न 3: द्वितीय छंद किसे संबोधित है और क्यों?

उत्तर:
द्वितीय छंद में कवि घनानंद बादल (मेघ) को संबोधित करते हैं। इस छंद में मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना को व्यक्त किया गया है। कवि ने बादल को इसलिए संबोधित किया है क्योंकि बादल का विरह अश्रुधारा (बारिश) के रूप में प्रकट होता है।

कवि अपने प्रेमाश्रुओं (आँसुओं) को बादल के माध्यम से अपने इष्ट के पास भेजना चाहता है। वह चाहता है कि जिस प्रकार बादल सागर के जल को अमृत बनाकर धरती पर बरसाते हैं, उसी प्रकार उसके प्रेमाश्रुओं को भी प्रेम सुधा के रूप में उसके इष्ट के पास पहुँचाया जाए।

यह छंद प्रेम की गहराई और उसकी उदारता को दर्शाता है। बादल का देह धारण करना केवल परोपकार के लिए है, और यही भावना कवि की प्रेमाभिव्यक्ति में भी प्रतिबिंबित होती है।


प्रश्न 4: परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:
कवि घनानंद के अनुसार, परहित के लिए देह बादल धारण करता है। बादल का शरीर धरती पर जीवनदायिनी वर्षा लाने के लिए होता है। वह निःस्वार्थ भाव से सागर के जल को अमृत बना कर धरती पर बरसाता है, जिससे सभी प्राणियों को जीवन मिलता है।

बादल का देह धारण करना केवल परोपकार के लिए होता है। वह अपना सर्वस्व न्योछावर करके दूसरों के लिए जीवनदायिनी वर्षा करता है। उसके अस्तित्व का एकमात्र उद्देश्य दूसरों को लाभ पहुँचाना होता है, और इसके बदले में वह कुछ भी नहीं लेता। यही सच्चे प्रेम और परोपकार की भावना है, जो बादल के माध्यम से कवि ने व्यक्त की है।

प्रश्न 5: कवि कहाँ अपने आँसुओं को पहुंचाना चाहता है और क्यों?

उत्तर:
कवि घनानंद अपने प्रेमाश्रुओं (आँसुओं) को अपनी प्रेयसी सुजान के पास पहुंचाना चाहता है। वह विरह-वेदना से भरे अपने आँसुओं को बादल के माध्यम से सुजान के आँगन में बरसाना चाहता है, ताकि उसकी प्रेयसी उसकी पीड़ा और प्रेम को समझ सके। कवि अपने प्रेम की गहराई और व्यथा को अपने आँसुओं के माध्यम से प्रकट करना चाहता है, और इसलिए वह चाहता है कि उसके आँसू उसकी प्रेयसी तक पहुँचें, जिससे उसकी प्रेम की आस्था सजीव और शाश्वत बनी रहे।

प्रश्न 6: व्याख्या करें:

(क) यहाँ एक ते दूसरौ ऑक नहीं।

उत्तर:
इस पंक्ति में कवि घनानंद कहते हैं कि प्रेम में प्रेमी और प्रेयसी के बीच कोई भिन्नता या दूसरा स्थान नहीं होता। प्रेम में दो लोग मिलकर एक हो जाते हैं, और उनका अस्तित्व एक दूसरे में पूरी तरह से समाहित हो जाता है। कवि अपनी प्रेयसी सुजान को संबोधित करते हुए कहता है कि उसके हृदय में केवल वही बसी हुई है, और उसके सिवा किसी और का कोई स्थान नहीं है।

(ख) कछु मेरियो पीर हिएं परसौ।

उत्तर:
इस पंक्ति में कवि घनानंद बादल से आग्रह करते हैं कि वह उनके हृदय की पीड़ा को महसूस करे। कवि चाहता है कि बादल उसके प्रेमाश्रुओं को सुजान के आँगन में पहुंचाए, ताकि उसकी प्रेयसी उसकी व्यथा को समझ सके। यहाँ कवि अपने दिल की गहराई और विरह की पीड़ा को प्रकट करने की कोशिश कर रहा है, और वह चाहता है कि बादल उसके दुःख को सुजान तक पहुंचा दे।

सारांश:

कवि घनानंद की कविता ‘अति सूधो सनेह को मारग है’ में प्रेम के मार्ग की सरलता और पवित्रता का वर्णन किया गया है। कवि के अनुसार, प्रेम का रास्ता सीधा और निश्छल होता है, जिसमें छल-कपट या चतुराई की कोई आवश्यकता नहीं होती। इस मार्ग पर वही व्यक्ति चलते हैं, जिनमें न तो अहंकार होता है और न ही कोई झिझक। प्रेम में दो अलग-अलग अस्तित्व नहीं रहते, बल्कि प्रेमी और प्रेयसी एकाकार हो जाते हैं।

कवि ने बादलों का उदाहरण देकर कहा है कि जैसे बादल परहित के लिए शरीर धारण करके जीवनदायिनी वर्षा करते हैं, वैसे ही प्रेमी भी अपने आँसुओं के माध्यम से अपनी प्रेम-वेदना को प्रकट करता है। कवि बादल से अनुरोध करते हैं कि वे उनके आँसुओं को उनके प्रिय की आँगन तक पहुंचा दें, ताकि उनके प्रेम की आस्था और गहराई प्रकट हो सके।

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