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Free bihar board class 10th hindi chapter 12 : शिक्षा और संस्कृति

August 20, 2024 by Ankit Banger Leave a Comment

bihar board class 10th hindi chapter 12 : बिहार बोर्ड कक्षा 10 के हिंदी विषय के पाठ 12 शिक्षा और संस्कृति जो एक एक शिक्षा शास्त्र है जिसे महात्मा गाँधी के द्वारा लिखा गया है | इस पाठ के सम्पूर्ण सवालों के जानेगें जो आपके आपके परीक्षा में कभी ज्यादा मदद करने वाली हैं | सभी पप्रश्न उत्तर आपके लिए कभी ज्यादा उपयोगी होगा | इस वेबसाइट में आपको सभी चेप्टर के महत्पूर्ण सवाल देखने को मिल जायेगा

महात्मा गांधी के निबंध “शिक्षा और संस्कृति” में, उन्होंने शिक्षा का उद्देश्य केवल बौद्धिक विकास नहीं, बल्कि नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का संवर्धन भी बताया है। गांधीजी ने मातृभाषा में शिक्षा का समर्थन किया और कहा कि इससे बच्चे अपनी संस्कृति से बेहतर जुड़ सकते हैं। उन्होंने शारीरिक श्रम को भी शिक्षा का हिस्सा बनाने पर जोर दिया, ताकि विद्यार्थी आत्मनिर्भर बन सकें। गांधीजी के अनुसार, शिक्षा का मकसद केवल डिग्री प्राप्त करना नहीं, बल्कि व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है, जिसमें मानसिक, शारीरिक, नैतिक और सांस्कृतिक विकास शामिल है।

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bihar board class 10th hindi chapter 12

Board NameBihar School Examination Board
Class10th
SubjectHindi ( गोधूलि भाग-2 )
Chapterशिक्षा और संस्कृति ( शिक्षा शास्त्र)
Writerमहात्मा गाँधी
Sectionगद्यखंड
LanguageHindi
Exam2025
Last UpdateLast Weeks
Marks100

शिक्षा और संस्कृति

पाठ 12: शिक्षा और संस्कृति (शिक्षा शास्त्र) – महात्मा गांधी

परिचय:
महात्मा गांधी का “शिक्षा और संस्कृति” एक महत्वपूर्ण निबंध है, जिसमें उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था और संस्कृति के बीच गहरे संबंधों को उजागर किया है। गांधीजी का मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य न केवल बौद्धिक विकास है, बल्कि नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण और संवर्धन भी होना चाहिए।

मुख्य विचार:

  1. शिक्षा का उद्देश्य:
    गांधीजी के अनुसार, शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करना है। इसके लिए आवश्यक है कि शिक्षा ऐसी हो जो न केवल जानकारी प्रदान करे, बल्कि व्यक्ति में अच्छे आचरण, नैतिकता और सच्चाई के गुणों को विकसित करे। शिक्षा का कार्य केवल बुद्धि का विकास करना नहीं है, बल्कि हृदय और आत्मा का विकास करना भी आवश्यक है।
  2. शिक्षा और संस्कृति का संबंध:
    गांधीजी ने शिक्षा और संस्कृति के बीच घनिष्ठ संबंध पर जोर दिया है। उनका मानना था कि शिक्षा का सही अर्थ तभी पूर्ण होता है जब वह संस्कृति के साथ जुड़ी होती है। संस्कृति से तात्पर्य उन मूल्यों, परंपराओं, और जीवनशैली से है जो एक समाज को विशिष्ट बनाती हैं। शिक्षा के माध्यम से इन सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण और संवर्धन किया जाना चाहिए।
  3. मातृभाषा में शिक्षा:
    गांधीजी ने हमेशा मातृभाषा में शिक्षा देने का समर्थन किया। उनका मानना था कि बच्चे की मातृभाषा में शिक्षा मिलने से वह अपनी संस्कृति और परंपराओं से बेहतर ढंग से जुड़ सकता है। इसके अलावा, मातृभाषा में शिक्षा पाने से ज्ञान ग्रहण करने में भी आसानी होती है, और बच्चा अधिक सृजनशील बनता है।
  4. शारीरिक श्रम का महत्व:
    गांधीजी ने शिक्षा में शारीरिक श्रम को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया। उनका कहना था कि विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ शारीरिक श्रम की भी शिक्षा दी जानी चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें और जीवन के विभिन्न कार्यों में निपुण हो सकें। इससे शिक्षा व्यावहारिक और जीवनोपयोगी बनती है।
  5. सर्वांगीण विकास:
    गांधीजी के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना और डिग्री प्राप्त करना नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य सर्वांगीण विकास करना है। इसमें मानसिक, शारीरिक, नैतिक, और सांस्कृतिक विकास शामिल है।
  6. आत्मनिर्भरता:
    गांधीजी ने आत्मनिर्भरता को शिक्षा का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य माना। उन्होंने कहा कि शिक्षा का ऐसा होना चाहिए कि व्यक्ति अपने जीवनयापन के लिए दूसरों पर निर्भर न रहे।

उपसंहार:
महात्मा गांधी का “शिक्षा और संस्कृति” निबंध शिक्षा के व्यापक और सर्वांगीण दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है। गांधीजी ने शिक्षा के माध्यम से न केवल समाज को ज्ञानवान बनाने का, बल्कि उसे नैतिक, सांस्कृतिक और आत्मनिर्भर बनाने का भी लक्ष्य रखा था। उनका यह दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है और शिक्षा नीति निर्माताओं के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो सकता है।

शिक्षा और संस्कृति ( शिक्षाशास्त्र ) से संबधित महत्पूर्ण सवाल

प्रश्न 1. गांधीजी “बढ़िया शिक्षा” किसे कहते हैं?
उत्तर: गांधीजी के अनुसार, अहिंसक प्रतिरोध सबसे उत्कृष्ट और बढ़िया शिक्षा है। उनके विचार से बच्चों को साधारण अक्षर ज्ञान से पहले आत्मा, सत्य, प्रेम और आत्मा की शक्तियों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य यह होना चाहिए कि बच्चे जीवन के संघर्षों में प्रेम से घृणा को, सत्य से असत्य को, और कष्ट-सहन से हिंसा को जीतना सीखें।

प्रश्न 2. इंद्रियों का बुद्धिपूर्वक उपयोग सीखना क्यों जरूरी है?
उत्तर: गांधीजी के अनुसार, इंद्रियों का बुद्धिपूर्वक उपयोग करना बुद्धि के विकास का सबसे उत्तम तरीका है। हालांकि, अगर इस विकास के साथ आत्मा की जागृति नहीं होती, तो यह विकास अधूरा और एकांगी रहेगा। इसलिए, मस्तिष्क का समुचित विकास तभी संभव है जब शारीरिक और आध्यात्मिक शिक्षा भी साथ-साथ हो।

प्रश्न 3. शिक्षा का अभिप्राय गांधीजी क्या मानते हैं?
उत्तर: गांधीजी के अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य बच्चे और मनुष्य के शरीर, बुद्धि, और आत्मा के सभी श्रेष्ठ गुणों को प्रकट करना है। वे मानते हैं कि पढ़ना-लिखना शिक्षा का अंत नहीं है, बल्कि यह केवल एक साधन है। साक्षरता को वे शिक्षा का पर्याय नहीं मानते, बल्कि उनका मानना है कि बच्चे को प्रारंभ से ही उपयोगी कौशल सिखाकर उसे उत्पादन के कार्य में सक्षम बनाना चाहिए।

प्रश्न 4. मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास कैसे संभव है?
उत्तर: गांधीजी के अनुसार, मस्तिष्क और आत्मा का उच्चतम विकास तभी संभव है जब शिक्षा पद्धति में दस्तकारी या उद्योगों के माध्यम से शिक्षा दी जाए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा को वैज्ञानिक ढंग से सिखाया जाना चाहिए, जिससे बच्चे की प्रत्येक प्रक्रिया का कारण समझाया जा सके। इसके साथ ही, सफाई, तंदुरुस्ती, भोजनशास्त्र, और स्वावलंबन के मूल सिद्धांतों का भी शिक्षा में समावेश जरूरी है।

प्रश्न 5. गांधीजी कताई और धुनाई जैसे ग्रामोद्योगों द्वारा सामाजिक क्रांति कैसे संभव मानते थे?
उत्तर: गांधीजी का मानना था कि कताई और धुनाई जैसे ग्रामोद्योग सामाजिक क्रांति के अग्रदूत बन सकते हैं। ये उद्योग नगर और ग्राम के बीच नैतिक और स्वस्थ संबंधों को स्थापित करेंगे। इससे समाज की मौजूदा आरक्षित स्थिति और वर्गों के बीच विषाक्त संबंधों की कई बुराइयों को दूर किया जा सकेगा। साथ ही, इससे ग्रामीण जीवन का विकास होगा और गरीब-अमीर के बीच का भेदभाव कम होगा।

प्रश्न 6. गांधीजी शिक्षा का ध्येय क्या मानते थे और क्यों?
उत्तर: गांधीजी के अनुसार, शिक्षा का मुख्य ध्येय चरित्र-निर्माण होना चाहिए। वे मानते थे कि शिक्षा के माध्यम से मनुष्य में साहस, बल, और सदाचार जैसे गुणों का विकास होना चाहिए, क्योंकि चरित्र निर्माण के द्वारा ही सामाजिक उत्थान संभव है। ऐसे व्यक्तियों के हाथों में समाज के संगठन का काम सहजता से सौंपा जा सकता है।

प्रश्न 7. गांधीजी देशी भाषाओं में बड़े पैमाने पर अनुवाद कार्य क्यों आवश्यक मानते थे?
उत्तर: गांधीजी का मानना था कि देशी भाषाओं में अनुवाद के माध्यम से किसी भी भाषा के ज्ञान और विचारों को आसानी से ग्रहण किया जा सकता है। अंग्रेजी या अन्य भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान-भंडार को मातृभाषा के माध्यम से प्राप्त करना सरल होता है। इसलिए, उन्होंने बड़े पैमाने पर अनुवाद कार्य की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि सभी भाषाओं के ज्ञान को अपनी भाषा में समाहित किया जा सके।

प्रश्न 8. दूसरी संस्कृति से पहले अपनी संस्कृति की गहरी समझ क्यों जरूरी है?
उत्तर: दूसरी संस्कृतियों की कद्र और समझ तभी होनी चाहिए जब हम अपनी संस्कृति को पूरी तरह से समझ चुके हों। हमारी संस्कृति रत्नों से भरी हुई है, इसलिए पहले हमें अपनी संस्कृति को जानकर और उसे अपनाकर ही दूसरी संस्कृतियों से कुछ सीखने की कोशिश करनी चाहिए। अपनी संस्कृति का ज्ञान हमें चरित्र-निर्माण में मदद करता है, जो अन्य संस्कृतियों से कुछ सीखने की क्षमता प्रदान करता है। इस प्रकार, अपनी संस्कृति का आधार बनाकर ही अन्य संस्कृतियों से जुड़ना चाहिए।

प्रश्न 9. अपनी संस्कृति और मातृभाषा की बुनियाद पर दूसरी संस्कृतियों और भाषाओं से सम्पर्क क्यों बनाया जाना चाहिए? गांधीजी की राय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: गांधीजी के अनुसार, हमें अपनी संस्कृति और मातृभाषा का महत्व समझना चाहिए। मातृभाषा के माध्यम से हम तेज गति से विकास कर सकते हैं, और अपनी संस्कृति के माध्यम से जीवन में उत्थान कर सकते हैं। हालांकि, हमें दूसरी संस्कृतियों की अच्छी बातों को अपनाने में परहेज नहीं करना चाहिए। यह ध्यान रखना जरूरी है कि अपनी संस्कृति और भाषा का महत्व कम न हो, बल्कि उसे आधार बनाकर अन्य भाषाओं और संस्कृतियों को अपने जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए।

प्रश्न 10. गांधीजी किस तरह के सामंजस्य को भारत के लिए बेहतर मानते हैं और क्यों?
उत्तर: गांधीजी विभिन्न संस्कृतियों के सामंजस्य को भारत के लिए बेहतर मानते हैं। उनका मानना है कि भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का यह सामंजस्य भारतीय जीवन को समृद्ध करता है, और ये संस्कृतियाँ भी भारतीय जीवन से प्रभावित होती हैं। ऐसा सामंजस्य स्वदेशी ढंग का होना चाहिए, जिसमें हर संस्कृति को अपना उचित स्थान मिले और भारतीय जीवन को प्रभावित कर सके।

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