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bihar board class 10th hindi solution in hindi : Chapter 5. नागरी लिपि ( निबंध )

August 19, 2024 by Ankit Banger Leave a Comment

bihar board class 10th hindi solution in hindi : बिहार बोर्ड हिंदी विषय के पाठ 5. नागरी लिपि जो एक निबंध जिसे गुणाकर मुले द्वारा लिया गया हैं | इस पाठ के सभी महत्पूर्ण सवाल और महत्पूर्ण बिंदु को आप इस आर्टिकल में जानेगें जो आपको निश्चित ही प्रतियोगिता परीक्षाओं में कभी ज्यादा मदद करने वाली हैं | इन सवालों को अवश्य पढ़ें और अपने ज्ञान को बढ़ाएं |

नागरी लिपि पर संक्षिप्त जानकारी:

परिचय:
नागरी लिपि भारतीय भाषाओं की प्रमुख लिपि है, विशेष रूप से संस्कृत और हिंदी के लिए। यह लिपि ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है।

इतिहास और विकास:

  • प्राचीन काल: नागरी लिपि का विकास पहली शताब्दी ईस्वी के आसपास हुआ। यह ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई।
  • मध्यकाल: संस्कृत और प्राकृत ग्रंथों के लिए इसका प्रयोग जारी रहा।
  • आधुनिक काल: हिंदी को सरकारी भाषा के रूप में मान्यता मिलने के बाद, नागरी लिपि का व्यापक उपयोग हुआ।

विशेषताएँ:

  • अक्षरमाला: 44 अक्षर, जिसमें स्वर (अ, आ, इ, ई, आदि) और व्यंजन (क, ख, ग, आदि) शामिल हैं।
  • उच्चारण: स्वर और व्यंजन की सही स्थिति को दर्शाने के लिए विभिन्न चिह्न होते हैं।

महत्व और उपयोग:

  • साहित्य और शिक्षा: हिंदी और संस्कृत साहित्य को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण।
  • सरकारी दस्तावेज: संविधान और सरकारी कागजात में उपयोगी।
  • संस्कृत ग्रंथ: प्राचीन ग्रंथों की लेखन में महत्वपूर्ण भूमिका।

निष्कर्ष:
नागरी लिपि भारतीय सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो आज भी हिंदी और संस्कृत में उपयोग की जाती है।

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bihar board class 10th hindi solution in hindi : Chapter 5. नागरी लिपि ( निबंध )

Board NameBihar School Examination Board
Class10th
SubjectHindi ( गोधूलि भाग-2 )
Chapter5. नागरी लिपि ( निबंध )
Writerगुणाकर मुले
Sectionगद्यखंड
LanguageHindi
Exam2025
Last UpdateLast Weeks
Marks100

5. नागरी लिपि ( निबंध )

नागरी लिपि पर निबंध

परिचय:
नागरी लिपि भारतीय भाषाओं की प्रमुख लिपियों में से एक है। यह लिपि विशेष रूप से संस्कृत और हिंदी भाषाओं के लिए उपयोग की जाती है। नागरी लिपि का इतिहास और विकास भारतीय लिपियों के विकास के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह लिपि अक्षरमाला प्रणाली पर आधारित है और इसके अक्षर जोड़ने और लिखने की अपनी विशेष पद्धतियाँ हैं।

इतिहास और विकास:
नागरी लिपि का इतिहास बहुत पुराना है। यह लिपि ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है, जो भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन लिपियों में से एक थी। ब्राह्मी लिपि की आद्य रचनाएँ 3वीं शताब्दी ई.पू. की मानी जाती हैं। नागरी लिपि का विकास पहली शताब्दी ईस्वी के आसपास हुआ। यह लिपि मूलतः संस्कृत और प्राकृत भाषाओं को लिखने के लिए प्रयोग की जाती थी।

विशेषताएँ:

  1. अक्षरमाला: नागरी लिपि में कुल 44 अक्षर होते हैं, जिनमें स्वर और व्यंजन शामिल हैं। स्वर अक्षर स्वतंत्र होते हैं, जबकि व्यंजन अक्षर स्वरों के साथ जुड़े होते हैं।
  2. वर्णमाला: नागरी लिपि में वर्णमाला स्वर और व्यंजन दो प्रमुख वर्गों में बाँटी जाती है। स्वर अक्षर जैसे अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ होते हैं, जबकि व्यंजन अक्षर में क, ख, ग, घ, च, छ, ज, झ आदि शामिल हैं।
  3. उच्चारण की सुविधा: नागरी लिपि उच्चारण की सुविधा के लिए विशेष रूप से डिजाइन की गई है। इसमें स्वर और व्यंजन की सही स्थिति को दर्शाने के लिए विभिन्न चिह्न और संकेत होते हैं।

लिपि का विकास:
नागरी लिपि के विकास में विभिन्न कालखंडों और क्षेत्रों का योगदान रहा है। यह लिपि विभिन्न शासक और धार्मिक ग्रंथों द्वारा प्रोत्साहित की गई, जिससे इसका प्रचार-प्रसार हुआ।

  1. प्राचीन काल: नागरी लिपि ने प्राचीन भारतीय साहित्य को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संस्कृत और प्राकृत ग्रंथों को इस लिपि में लिखा गया।
  2. मध्यकाल: मध्यकाल में भी नागरी लिपि का उपयोग जारी रहा और कई भाषाओं जैसे हिंदी, राजस्थानी, अवधी, ब्रज भाषा आदि को लिखने के लिए इसका प्रयोग हुआ।
  3. आधुनिक काल: आधुनिक काल में नागरी लिपि का पुनरुत्थान हुआ और हिंदी भाषा की प्रमुख लिपि के रूप में इसे अपनाया गया। भारतीय संविधान द्वारा हिंदी को सरकारी भाषा के रूप में मान्यता मिलने के बाद, नागरी लिपि को व्यापक मान्यता प्राप्त हुई।

महत्व और उपयोग:

  1. साहित्य और शिक्षा: नागरी लिपि का उपयोग भारतीय साहित्य, कविता, शास्त्र और शिक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हुआ है। हिंदी और संस्कृत के ग्रंथ इस लिपि में लिखे गए हैं।
  2. संविधान और सरकारी दस्तावेज: हिंदी भाषा की सरकारी उपयोगिता और संविधान की बुनियादी ढाँचों में नागरी लिपि का प्रमुख स्थान है। सरकारी दस्तावेज, कानून और आधिकारिक घोषणाएँ इस लिपि में होती हैं।
  3. संस्कृत और प्राचीन ग्रंथ: नागरी लिपि ने संस्कृत के ग्रंथों और प्राचीन साहित्य को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

निष्कर्ष:
नागरी लिपि भारतीय भाषाओं और साहित्य की महत्वपूर्ण धरोहर है। इसके विकास और उपयोग ने भारतीय भाषा और संस्कृति को समृद्ध किया है। यह लिपि आज भी हिंदी और संस्कृत भाषाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बनी हुई है। नागरी लिपि की सरलता और व्यवस्थित वर्णमाला इसे एक प्रभावशाली और व्यावहारिक लिपि बनाती है।

महत्पूर्ण प्रश्न और उत्तर

पाठ के साथ

प्रश्न 1. देवनागरी लिपि के अक्षरों में स्थिरता कैसे आयी है?
उत्तर–करीब दो सदी पहले जब देवनागरी लिपि के टाइप बने और पुस्तकें छपने लगीं, तो इसके अक्षरों में स्थिरता आ गई। पहले, लिपि के अक्षरों में विविधता और अस्थिरता थी, लेकिन छपाई और मुद्रण की प्रक्रिया से मानकीकरण और स्थिरता आई।

प्रश्न 2. देवनागरी लिपि में कौन-कौन सी भाषाएँ लिखी जाती हैं?
उत्तर–देवनागरी लिपि में नेपाल की नेपाली (खसकुरा) और नेवारी भाषाएँ, मराठी भाषा, संस्कृत और हिंदी लिखी जाती हैं। यह लिपि इन भाषाओं के लेखन और साहित्य के लिए मानक है।

प्रश्न 3. लेखक ने किन भारतीय लिपियों से देवनागरी का संबंध बताया है?
उत्तर–लेखक ने देवनागरी लिपि का संबंध गुजराती और बंगला लिपि से बताया है। ये लिपियाँ देवनागरी से विकसित हुई हैं और उनमें समानताएँ पाई जाती हैं।

प्रश्न 4. नंदी नागरी किसे कहते हैं? किस प्रसंग में लेखक ने उसका उल्लेख किया है?
उत्तर–नंदी नागरी वह लिपि है जो दक्षिण भारत में पोथियाँ लिखने के लिए उपयोग की जाती थी। यह नाम नंदिनागरी से लिया गया है, जो महाराष्ट्र के नांदेड़ का पुराना नाम था। लेखक ने नंदिनागरी का उल्लेख दक्षिण भारत में विजयनगर, शिलाहार, राष्ट्रकूट, और देवगिरि के यादव शासकों के लेखों में किया है। इस लिपि का उपयोग इन राजाओं के शिलालेखों और दस्तावेजों में किया जाता था।

प्रश्न 5. नागरी लिपि में आरंभिक लेख कहाँ प्राप्त हुए हैं? उनके विवरण दें।
उत्तर–नागरी लिपि के आरंभिक लेख मुख्यतः दक्षिण भारत से प्राप्त हुए हैं। आठवीं सदी के चोल राजाओं जैसे राजराजा और राजेन्द्र के सिक्कों पर नागरी अक्षर देखे जाते हैं। उत्तर भारत में नौवीं सदी से नागरी लिपि के लेख मिलने लगते हैं। ये लेख हमें उस समय की प्राचीनतम नागरी लिपि के विकास और उपयोग की जानकारी प्रदान करते हैं।

प्रश्न 6. ब्राह्मी और सिद्धम लिपि की तुलना में नागरी लिपि की मुख्य पहचान क्या है?
उत्तर–ब्राह्मी और सिद्धम लिपि की तुलना में नागरी लिपि की मुख्य पहचान इसके अक्षरों के सिरों पर पूरी लकीरों की उपस्थिति है। जबकि ब्राह्मी और सिद्धम लिपि के अक्षरों के सिरों पर छोटी आड़ी लकीरें या छोटे ठोस तिकोने होते हैं, नागरी लिपि में अक्षरों के सिरों पर लंबी शिरोरेखाएँ होती हैं, जो अक्षरों की चौड़ाई के बराबर होती हैं।

प्रश्न 7. उत्तर भारत के किन शासकों के प्राचीन नागरी लेख प्राप्त होते हैं?
उत्तर–उत्तर भारत में नागरी लिपि के प्राचीन लेख महमूद गजनवी, मुहम्मद गोरी, अलाउद्दीन खिलजी, शेरशाह, और अकबर जैसे शासकों के सिक्कों पर प्राप्त होते हैं। महमूद गजनवी के लाहौर के सिक्कों पर नागरी अक्षर देखे गए हैं, और अन्य शासकों ने भी अपने सिक्कों पर नागरी लिपि के शब्द खुदवाए थे। ये लेख इस बात का प्रमाण हैं कि नागरी लिपि का उपयोग विभिन्न शासक काल में भी होता था।

प्रश्न 8. नागरी को देवनागरी क्यों कहते हैं? लेखक इस संबंध में क्या बताता है?
उत्तर–नागरी को देवनागरी इस कारण कहा जाता है कि ‘नागर’ या ‘नागरी’ शब्द उत्तर भारत के किसी बड़े नगर से संबंधित है। लेखक के अनुसार, पाटलिपुत्र (पटना) को प्राचीन काल में ‘नगर’ कहा जाता था और ‘नागर शैली’ के स्थापत्य से भी इसे जोड़ा जा सकता है। चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का व्यक्तिगत नाम ‘देव’ था, इसलिए गुप्तों की राजधानी पटना को ‘देवनगर’ कहा जाता था। इसलिए ‘देवनागरी’ नामकरण इस संदर्भ में हुआ होगा, जिसमें देवनगर की लिपि को देवनागरी कहा गया।

प्रश्न 9. नागरी की उत्पत्ति के संबंध में लेखक का क्या कहना है? पटना से नागरी का क्या संबंध लेखक ने बताया है?
उत्तर–लेखक के अनुसार, नागरी लिपि का नाम ‘नागर’ से आया है, जो किसी बड़े नगर से संबंधित है। ‘पादताडितकम्’ नाटक से पता चलता है कि पाटलिपुत्र (पटना) को प्राचीन काल में नगर के रूप में जाना जाता था। ‘नागर शैली’ की स्थापत्य कला भी इसी नगर से जुड़ी हो सकती है। चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य का नाम ‘देव’ था, इसलिए गुप्तकालीन पटना को ‘देवनगर’ भी कहा गया होगा। इस प्रकार, ‘देवनागरी’ नामकरण देवनगर की लिपि के संदर्भ में हुआ।

प्रश्न 10. नागरी लिपि कब तक सार्वदेशिक लिपि थी?
उत्तर–नागरी लिपि ईसा की 8वीं से 11वीं सदी तक पूरे देश में एक सार्वदेशिक लिपि के रूप में प्रचलित थी। इस अवधि में यह लिपि सम्पूर्ण भारत में व्यापक रूप से उपयोग में लाई जाती थी।

प्रश्न 11. नागरी लिपि के साथ-साथ किसका जन्म होता है? इस संबंध में लेखक क्या जानकारी देता है?
उत्तर–नागरी लिपि के साथ-साथ अनेक प्रादेशिक भाषाओं का जन्म होता है। लेखक के अनुसार, आठवीं-नौवीं सदी से आरंभिक हिंदी साहित्य मिलना शुरू हो जाता है और इसी काल में भारतीय आर्यभाषा परिवार की आधुनिक भाषाएँ, जैसे मराठी और बंगला, भी जन्म ले रही थीं।

प्रश्न 12. गुर्जर प्रतीहार कौन थे?
उत्तर–गुर्जर-प्रतीहार एक राजवंश था जो बाहरी आक्रमणकारियों से भारत की रक्षा के लिए जाना जाता है। ये विद्वानों के अनुसार बाहर से भारत आए थे और ईसा की आठवीं सदी की पूर्वार्द्ध में अवंती प्रदेश में शासन स्थापित किया। बाद में इन्होंने कन्नौज पर भी अधिकार कर लिया। मिहिर भोज और महेन्द्रपाल जैसे प्रख्यात प्रतीहार शासक हुए, जिनकी ग्वालियर प्रशस्ति नागरी लिपि में संस्कृत भाषा में है।

प्रश्न 13. निबंध के आधार पर काल-क्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण प्रस्तुत करें।
उत्तर–कालक्रम से नागरी लेखों से संबंधित प्रमाण इस प्रकार हैं:

  • ग्यारहवीं सदी: राजेन्द्र जैसे प्रतापी चेर राजाओं के सिक्कों पर नागरी अक्षर।
  • बारहवीं सदी: केरल के शासकों के सिक्कों पर ‘वीर केरलस्य’ जैसे शब्द नागरी लिपि में।
  • नौवीं सदी: दक्षिण से प्राप्त वरगुण का पलयम ताम्रपत्र नागरी लिपि में।
  • सातवीं-आठवीं सदी: मालवा नगर में नागर लिपि का उपयोग।
  • विक्रमादित्य के समय: पटना में देवनागरी का प्रयोग।
  • आठवीं सदी: दोहाकोश की तिब्बत से मिली हस्तलिपि नागरी लिपि में।
  • पाँच सौ चौवन ई.: राष्ट्रकूट राजा दंतिदुर्ग का दानपत्र नागरी लिपि में।
  • 850 ई.: जैन गणितज्ञ महावीराचार्य के गणित सार संग्रह की रचना नागरी लिपि में।

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